Wednesday, June 21, 2006

अथ संसद् समाचारः

राष्ट्राध्यक्षः उवाच - http://www.geocities.com/katare_nityagopal/sansad.wav संसद् क्षेत्रेऽधर्मक्षेत्रे राजनीति युयुत्सवः। समवेताः किं कुर्वन्ति सत्तापक्ष-विपक्षिणः।।१।। राष्ट्राध्यक्ष जी बोले- हे सचिव तुम मुझे बताओ कि इस समय अपनी धर्मनिरपेक्ष संसद सभा में क्या हो रहा है? वहाँ राजनैतिक योद्धागण सत्तापक्ष और विपक्ष के नेतागण एकत्रित होकर क्या कर रहे हैं? सचिव उवाच- प्रजातन्त्रस्य भो राजन् पश्यामि तच्छ्रूयताम्। विचित्रं संसद् दृश्यं नैतदुचितं न शोभनम्।।३ सचिव बोला- हे प्रजातन्त्र के राजन् मैं जो कुछ देखरहा हूँ ,कृपा केके आप भी सुनिये, किन्तु यह विचित्र सा संसद का दृश्य तो उचित है और न ही शोभनीय । सर्वे उत्थाय कुर्वन्ति कोलाहलं मत्स्य-हट्टवत्। बलात् गर्भगृहे गत्वा कटु वचनानि वदन्ति ते।।४ समस्त सांसद अपने-अपने स्थान से उठकर एक साथ बोल रहे हैं, जिससे मछली बाजार जैसा कोलाहल हो रहा है। कुछ सांसद बलात् गर्भगृह में घुसकर कटुवचन बोल रहे हैं। हस्तस्य मुष्ठिकां बध्वा कुर्वन्ति दन्तवादनम्। आसनं पादत्राणानि प्रक्षेपन्ति परस्परम्।।५ सब अपने अपने हाँथ की मुट्ठियाँ बाँधकर और दाँत किटकिटा कर चिल्ला रहे हैं।अपनी कुर्सियाँ और जूते-चप्पल एक दूसरे के ऊपर फेंक रहे हैं। तदा प्रलपति सभाध्यक्षः क्रुद्धं भूत्वा मुहुर्मुहुः। कोलाहले सभा मध्ये नादं तस्य न श्रूयते।।६ ऐसा दृश्य देखकर सभापति बार-बार क्रोधित होकर प्रलाप कर रहे हैं।किन्तु हुडदंग में उनकी आबाज बिल्कुल ही सुनाई नहीं दे रही है। किं कर्तव्य विमूढास्ते सचिवाः कर्मचारिणः। मतदातारश्च पश्यन्ति लज्जया दूरदर्शने।।संसद के सचिव और कर्मचारीगण किं कर्तव्य विमूढ होकर असहाय बैठे हैं और उन्हें चुनकर भेजने वाले मतदातागण भी उनके इस कृत्य को लज्जा पूर्वक दूरदर्शन पर देख रहे हैं। सर्वकारस्य वक्तव्यं न कोऽपि श्रोतुमिच्छति। बहिष्कारं च कृतवन्तः सर्वे प्रतिपक्ष-सांसदाः।।८ सरकार कुछ वक्तव्य देना चाहती है पर उसे कोई सुनना ही नहीं चाहता, और प्रतिपक्ष के समस्त सांसदों ने हल्ला करते हुए बहिष्कार कर दिया। स्थितिमेतादृशीं दृष्ट्वा हताशः खिन्न मानसः। चिन्तितः मंत्रिमण्डलस्य नेता वचनमब्रबीत्।।९ ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति को देखकर दुखी मन से हताश होते हुए और चिन्ता करते हुए मन्त्रिमण्डल के नेताप्रधान मन्त्री जी ने ये वचन कहे। श्री वाजपेयी उवाच-- हे सखे हे लालकृष्ण अधुना किं करवाण्यहम्। ममैते बान्धवाश्चैव शत्रु भावमुपागताः ।।१० श्री वाजपेयी बोले- मेरे परम प्रिय मित्र लालकृष्ण जी इस समय मैं क्या करूँ?मेरे ये बन्धु-बान्धव जो हमेशा मेरा सम्मान करते थेवे ही आज शत्रुता पूर्ण कार्य कर रहे हैं। एकतः संघ परिवारः अपरतः विहिप साधवः । सर्वे मिलित्वा कृतवन्तः दयनीयाति मे स्थितिः ।।११ एक ओर मेरा आत्मीय संघ परिवार है, दूसरी ओर मेरे ही शुभ चिन्तक विश्व हिन्दु परिषद के साधु-सन्त हैं,ये सब मिलकर मेरी स्थिति अत्यन्त दयनीय बना रहे हैं। कर्त्तव्यं किमकर्त्तव्यं किमुचितं किञ्च नोचितम्। करवाणि किन्न करवाणि मम बुद्धिर्विमोहिता।।१२ क्या कर्तव्य है ? क्या अकर्तव्य है ? क्या उचित है? क्या अनुचित है? मैं क्या करूँ ? क्या न करूँ इस मामले में मेरी बुद्धि मोहित सी हो गई है। तृमूका तेलगूदेशम अन्ये च सहयोगिनः। भिन्नं भिन्नं च वक्तव्यं ददति कष्टकरं महत्।।१३ तृणमूल काँग्रेस .तेलगूदेशम् .आदि मेरे ही सहयोगी दल अलग अलग प्रकार के अवांछित वक्तवय दे देकर मेरे कष्ट को और भी बढा रहे हैं। अतीव संवेदनशीलः ममता नीतेश विग्रहः। समता ममताभ्यां मध्ये अहं पिष्टोस्मि चूर्णवत्।।१४ अभी अभी ममता और नीतेश का झगड़ा तो और भी अधिक संवेदनशील हो गया है।इन ममता समता के बीच में मैं तो व्यर्थ ही पिसा जा रहा हूँ।।

1 comment:

दिवाकर मणि said...

सरलभाषायां लिखितानि श्लोकानि मारकानि सन्ति ।
महोदय ! इयं लेखनपरम्परा नैरन्तर्यं वाञ्छति । अस्तु, दीपावल्याः-भ्रातृ द्वितीयायाः/गोवर्धनपूजायाः-सूर्यषष्ठीमहापर्वस्य अग्रिमा हार्दिकी शुभाशयाः ।